Add To collaction

लेखनी कहानी -28-Oct-2022 परिश्रम का फल

सब कहते हैं कि परिश्रम का फल अवश्य मिलता है । मैंने तो इसे पूरी जिंदगी अनुभव किया है । मेरे घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी बताते हैं कि वे जब बहुत छोटे थे तो घर मैं मिठाई नमकीन वगैरह चुरा चुरा कर खाते थे । उनकी मां चाहे लाख छुपा लें तो भी कठिन परिश्रम करके वे उसे ढूंढ ही लेते थे । जाहिर है कि परिश्रम का फल तो मिलता ही है तो वे जी भरकर मिठाई खाते थे । 
जब वे थोड़े बड़े हुए तो उन्हें दिव्य ज्ञान हुआ और वे नकल करने के तरीके खोजने लगे । बड़ा परिश्रम किया उन्होंने इसके लिए । गुरुजी चाहे कितने ही सजग रहते , वे परिश्रम करके नकल कर ही लेते थे । आखिर इसका परिणाम भी सुखद ही निकला । चाहे तृतीय श्रेणी में ही सही, उत्तीर्ण तो हो गये थे वे । 

आगे भी इस मूलमंत्र का फायदा उन्हें मिला । उनके मौहल्ले की रूपवती गुणवती लड़की "सौन्दर्या" पर उनका दिल आ गया । वे रात दिन उसकी गली का फेरा लगाने लगे । कभी राह में आगे पीछे दौड़ लगाते तो कभी खिड़की से प्रेमपत्र फेंककर हाल ए दिल उस तक पहुंचाते थे । उनकी मेहनत रंग लाई और एक दिन उनको देखकर सौन्दर्या मुस्कुराई । बस, उनकी बात बन गई और सौन्दर्या उनकी जीवन संगिनी बन गई । 

इसके आगे भी कहानी बाकी है अभी । नौकरी लगी नहीं थी उनकी । उन्होंने कठिन परिश्रम का फल देख रखा था । सरपंच के घर जाकर रोज उनके पैर दबाने लगे । कभी तेल मालिश तो कभी चंपी करने लगे । सरपंच का दिल कैसे ना पिघलता ? आखिर वो भी तो इंसान ही थे । परिश्रम से तो भगवान भी मिल जाते हैं तो नौकरी कौन सी बड़ी बात है ? । पहले छोकरी मिली फिर नौकरी । हो गई पौ बारह । 

उनका एक ही फंडा था । काम नहीं करना सिर्फ चमचागिरी ही करना । घर हो या ऑफिस, चमचागिरी में कोई कोताही नहीं करते थे वे । बीवी के आगे दुम हिलाना और बॉस के सामने मिमियाना, जीवन का मूलभूत सिद्धांत बन गया था उनका । इस कठिन परिश्रम के कारण वे आज भी बीवी के लाडले और बॉस की आंखों के तारे बने हुए हैं । उनका व्यक्तित्व वाकई कमाल है । परिश्रम के पुजारी हंसमुख लाल जी सबके लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं । 

श्री हरि 
28.10.22 

   17
4 Comments

Mithi . S

09-Nov-2022 06:02 AM

Very nice

Reply

shweta soni

01-Nov-2022 10:09 AM

Nice post

Reply

Abeer

28-Oct-2022 10:26 PM

बहुत सुंदर 👌

Reply